Wed Apr 22 2020 13:43:41 GMT+0530 (India Standard Time)
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9d79b945a0
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60aea3cb4d
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@ -1,7 +1,7 @@
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"title": "मैं परमेश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा,",
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"body": "लेखक प्रमेशवर के विषय में कहता है जैसे कि वह एक बहुत बड़ा पहाड़ है जो कि दुसमनो के हमले से सुरक्षा प्रदान करता है।"
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"body": "लेखक परमेश्वर के विषय में कहता है जैसे कि वह एक बहुत बड़ा पहाड़ है जो कि दुश्मनों के हमले से सुरक्षा प्रदान करता है।"
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},
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"title": "मैं क्यों शोक का पहरावा पहने हुए चलता-फिरता हूँ?",
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@ -9,14 +9,14 @@
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},
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"title": "मेरी हड्डियाँ मानो कटार से छिदी जाती हैं",
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"body": "लेखक अपने विरोधीयो की निंदा को इस तरह प्रकट करता है जैसे कि वह घातक जखमो को ले रहा है।"
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"body": "लेखक अपने विरोधीयों की निंदा को इस तरह प्रकट करता है जैसे कि वह घातक जख्मों को ले रहा है।"
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},
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{
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"title": "वे दिन भर मुझसे कहते रहते हैं",
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"body": "“उसके विरोधी उसको लगातार नही परंतू अकसर कहते रहते है”"
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"body": "“उसके विरोधी उसको लगातार नहीं परँतू अकसर कहते रहते है”"
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},
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"title": " तेरा परमेश्वर कहाँ है?",
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"body": "“यहा तुमहारा प्रमेशवर मदद के लिऐ नही है”"
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"body": "“यहा तुम्हारा परमेश्वर मदद के लिऐ नही है”"
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}
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@ -1,7 +1,7 @@
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"title": "हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? ",
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"body": "“मुझे गिरना नही चाहीऐ था, मुझे चिंता नही करनी चाहीए थी”"
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"body": "“मुझे गिरना नही चाहीए, मुझे चिंता नही करनी चाहीए ”"
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},
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"title": " गिरा जाता है",
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@ -9,6 +9,6 @@
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},
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"title": " परमेश्वर पर भरोसा रख",
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"body": "लेखक अपने प्राणो को प्रमेशवर पर भरोसा रखने को लगातार कहता और हुकम देता रहता है।"
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"body": "लेखक अपने प्राणो को परमेश्वर पर भरोसा रखने को लगातार कहता और हुक्म देता रहता है।"
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}
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@ -9,7 +9,7 @@
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},
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"title": "तूने क्यों मुझे त्याग दिया है? मैं शत्रु के अत्याचार के मारे शोक का पहरावा पहने हुए क्यों फिरता रहूँ? ",
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"body": "परमेश्वर से शिकायत करने के लिए लेखक यह प्रशन पूछता है और अपनी भावनाओ को प्रकट करता है, उतर प्रयाप्त करने को नही।"
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"body": "परमेश्वर से शिकायत करने के लिए लेखक यह प्रशन पूछता है और अपनी भावनाओं को प्रकट करता है, उतर प्राप्त करने को नहीं।"
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},
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{
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"title": " मैं शोक का पहरावा पहने हुए क्यों फिरता रहूँ?",
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@ -17,6 +17,6 @@
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},
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"title": "शत्रु के अत्याचार के मारे ",
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"body": "“क्योकि मेरे विरोधी मुझ पर अत्याचार करते है”"
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"body": "“क्योंकि मेरे विरोधी मुझ पर अत्याचार करते है”"
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}
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@ -367,6 +367,10 @@
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"42-03",
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"42-05",
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"42-07",
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"42-09",
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"42-11",
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"43-title",
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"43-01",
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"46-title",
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"46-01",
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"46-04",
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