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05/19.txt Normal file
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\v 19 शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गंदे काम, लुचपन, \v 20 मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, \v 21 डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम को पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे।

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05/22.txt Normal file
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\v 22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, और दया, भलाई, विश्वास, \v 23 नम्रता, और संयम हैं। ऐसे-ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं। \v 24 और जो मसीह के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।

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05/25.txt Normal file
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\v 25 यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी। \v 26 हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।

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