From ac1a192188aa0083dbee396326ee927e8a6fb4f1 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Vachaa Date: Wed, 6 Nov 2024 12:08:39 +0530 Subject: [PATCH] Wed Nov 06 2024 12:08:39 GMT+0530 (India Standard Time) --- 05/19.txt | 1 + 05/22.txt | 1 + 05/25.txt | 1 + manifest.json | 5 ++++- 4 files changed, 7 insertions(+), 1 deletion(-) create mode 100644 05/19.txt create mode 100644 05/22.txt create mode 100644 05/25.txt diff --git a/05/19.txt b/05/19.txt new file mode 100644 index 0000000..c4a7afe --- /dev/null +++ b/05/19.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 19 शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गंदे काम, लुचपन, \v 20 मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, \v 21 डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम को पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे। \ No newline at end of file diff --git a/05/22.txt b/05/22.txt new file mode 100644 index 0000000..0b23dbc --- /dev/null +++ b/05/22.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, और दया, भलाई, विश्वास, \v 23 नम्रता, और संयम हैं। ऐसे-ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं। \v 24 और जो मसीह के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है। \ No newline at end of file diff --git a/05/25.txt b/05/25.txt new file mode 100644 index 0000000..8f0917a --- /dev/null +++ b/05/25.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 25 यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी। \v 26 हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें। \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index a535861..149e2e4 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -87,6 +87,9 @@ "05-09", "05-11", "05-13", - "05-16" + "05-16", + "05-19", + "05-22", + "05-25" ] } \ No newline at end of file