शब्द "सिर" एक मानव शरीर के ऊपरी भाग को संदर्भित करता है, गर्दन के ऊपर। इस शब्द का प्रयोग अक्सर "शीर्ष", "पहले," "शुरुआत," "स्रोत," और अन्य अवधारणाओं सहित कई अलग-अलग चीजों का अर्थ करने के लिए किया जाता है।
बाइबल में “सिर” शब्द को विभिन्न प्रतीकात्मक रूपों में काम में लिया गया है।
* “उसके सिर पर उस्तरा न चलाया जाए” अर्थात “वह न तो कभी अपने बाल कटवाए और न ही कभी दाढ़ी बनवाए।”
* “इसका खून उसके सिर पर हो” अर्थात उसकी हत्या का उत्तरदायी यही मनुष्य हो और दण्ड पाए।
* अभिव्यक्ति “गेहूं का सिर” अर्थात गेहूं या जौ के पौधे का वह ऊपरी भाग को संदर्भित करता है जिसमें बीज होते हैं। इसी तरह, अभिव्यक्ति "एक पर्वत का सिर" पर्वत के शीर्ष भाग को संदर्भित करता है।
* “सिर” का अर्थ कभी-कभी किसी बात के आरंभिक चरण या स्रोत से होता है जैसे, “मार्ग का सिर (आरंभ)”
* इस शब्द का उपयोग मनुष्यों पर अधिकार रखने वाले के लिए किया गया है। “तूने मुझे जाति-जाति का सिर बनाया है।” इसका अनुवाद हो सकता हैः "तू ने मुझे राजा बनाया है" या “तूने मुझे…. पर अधिकार दिया है।"