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वैसे ही
यह वैसे ही एक और मिसाल के बयान के लिए है।
राहब वैश्या भी...कामों में रास्तबाज़ न ठहरी?
याकूब इस असरदार सवाल के ज़रिए अपने पढ़नेवालों को ता'लीम दे रहा है। इस ख़ास बयान का तर्जुमा ऐसे भी किया जा सकता है, “राहाब फ़ाहेशा के 'अमल ही के ज़रिए वह रास्तबाज़ ठहरी थी।”
राहाब फ़ाहेशा
याकूब अपने पढ़ने वालों से उम्मीद करता था कि वह पुराने अहद की इस कहानी को जानते हैं।
फरिश्तों को अपने घर में उतारा
किसी और जगह से आने वाले पैगम्बर
दूसरे रास्ते से विदा किया
“शहर से बचकर भागने में मदद की”
जैसे दिल रूह के बिना मरी हुई है वैसे ही ईमान भी 'आमाल बिना मरा हुआ है।
याकूब ज़ोर देकर कहता है कि जो इन्सान ईमान के साथ काम नहीं करता है वह रूह से महरूम जिस्म के जैसा है। दोनों ही मर्दा और बेकार है।