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पौलुस भीड़ से अपनी बात जारी रखता है।
इस शहर में गमलीएल की बातों को बैठकर पढ़ाया गया
“यरुशलीम में गमलीएल रब्बी का शागिर्द था”
बापदादों की शरी'अत भी ठीक तरीक़े पर सिखाया गया
"उन्होंने मुझे हमारे बुज़ुर्गों की शरी'अत के सख्त तरीक़े के मुताबिक़ हुक्म दिया"या"जो हुक्म सही तौर से बापदादों की शरी'अत से था
ख़ुदा के लिए ऐसी लौ लगाए था
ख़ुदावन्द की मर्ज़ी के लिए मैं अपने दिल में बहुत गहराई से महसूस करता हूँ और उसके मुताबिक़ करता हूँ” या फिर, “मैं कि ख़िदमत को तैयार हूँ”
जैसे तुम सब आज लगाए हो
जिस तरीक़े से आज तुम सब रहते हो” या फिर, “जैसे कि आज तुम हो।” पौलुस यहाँ ख़ुद की तुलना भीड़ से कर रहा है।
इस रास्ते को
पिन्तेकुस्त के बा'द यरुशलीम में ईमानदारों के मौजूदा जिस्म को “फ़िरक़ा” का नाम दिया गया था।(देखें रसूलों के'आमाल
मरवा भी डाला
पौलुस फ़िरक़े के मानने वालों को मार डालने को भी तैयार था
गवाही देकर
“बुज़ुर्ग इसकी गवाही देते हैं” या “साबित करते हैं”
भाइयों के नाम पर ख़त लेकर
“सरदार काहिन और बुज़ुर्गों से ख़त लेकर”
बांधकर यरूशलीम वापिस ले आऊं
“मुझे हुक्म था कि मैं उन्हें कड़ियों में बाँध कर यरुशलीम वापिस ले आऊँ”