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\v 3 \v 4 \v 5
\v 5 \v 3 \v 4 पापी स्वभावसे कमजोर हुइके व्यवस्था जो न कर पाई बो परमेश्वर करी, अर्थात् बो अपन पुत्रके पापी शरीरके स्वरूपमे पापबली जैसो पठाई | अइसिए वह पापके शरिरैमे दण्ड दै, 4 जहेमारे व्यवस्थाके उचित जरुरत हममे पुरो होबै, हम जो पापमय स्वभाव अनुसार नाए, पर पवित्र आत्माअनुसार चलत हएँ| 5 काहेकी पाप स्वभाव अनुसार चलन बारे शरीरक बातमे मन लगात हएँ, पर आत्मा अनुसार चलन बारे आत्माकी बातमे मन लगात हएँ

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\v 6 \v 7 \v 8 7 तहु फिर सब आदमीमे त जा ज्ञान ना होत हए| पर गजब आदमीनके मूर्तिपूजा बनके बैठे होत हँए, कि बे अइसो खानु खात नेहत्व मूर्तिके चढाव मानत हँए, और बिनको विवेक दुर्वल भव हए जहेमारे अशुध्द होत हँए| 8 पर खान बारी चिज हमके परमेश्वरकी नजरमे जद्धा ग्रहण य
\v 8 \v 6 \v 7 काहेकी पापमय स्वभावमे मन लगान त मृत्यु हए, पर पवित्र आत्मामे मन लगान जीवन और शान्ति हए| 7 काहेकी पाप स्वभावके शरीर घेन लागो मन त परमेश्वरके ताहीं शत्रु है| बो परमेश्वरको व्यवस्थक अधिनमे ना होत हए| न बा कबहु हुइ पै है | 8 पाप स्वभावके बशमे होनबारे परमेश्वरके खुसी ना कर पै हएँ

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\v 9 \v 10 9 पर होशियार होबओ, तुमर जा स्वतन्त्रता दुर्वलके ताहिँ ठोकरको कारन ना बनए| 10 काहेकी कोई दुर्वल दिमाक भव आदमी तए ज्ञान भव आदमीके मूर्तिके मन्दिरमे खान बैठो देखि कहेसे, मूर्तिके चढओ खानबारी चिज खानके का बा हिम्मत ना करहए?
\v 9 \v 10