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\v 27 \v 28 27 "काहेकी परमेश्वर सबै बात बाके पाउतरे अधिनमे धरीहए|” पर जा त स्पष्ट हए, कि ""सबै बात बाके अधिनमे धरीहए"" जहेमारे परमेश्वर अपनए जा अधिनमे नाएहए, जो सब बात ख्रीष्टको अधिनमे धरदै हए| " 28 जब सब बात बाके अधिनमे लातहए, तव स्वयम पुत्र बाको अधिनमे होतहए, जो सब चिज बाके अधिनमे धरत हए, ताकि परमेश्वर नाए सब चिज सर्वेसर्वा होबए

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\v 29 \v 30 29 नत मरेभएके ताहि बप्तिस्मा लाओको अर्थ का भव? मरेभए जिन्दा नाए हुईके फिर त बिनके ताहि आदमी काहे बप्तिस्मा लेतहए? 30 मए काहे हरघड़ी जोखिममे पणतहओ|

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\v 31 \v 32 31 भैया तुम, हमर प्रभु येशूमे तुमर करन मए गर्व करत हौ, और मए कहन सिक्त हौ, कि प्रत्येक दिन मए मरत हौ| 32 आदमीको बात करन हए कहेसे, एफिससमे जङ्गली जनावरसंग मिर लड़ाईके मोके का फाइदा भव? मरोभव जिन्दा नाए हुईतो तव, “हम खामै और पितए, काहेकी कल त हम मरजए हए|”

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15/33.txt Normal file
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\v 33 \v 34 33 भ्रममे मत पणओ| खराब सङ्गतसे अच्छो चरित्रके नष्ट करत हए| 34 होशमे होबौ, अब पाप मत करौ| काहेकी कित्तोके त परमेश्वरको ज्ञान नैयाँ| तुमके लाजमे पारन मए जा कहो हौ

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\v 35 \v 36 35 "पर कोइ पुछैगो ""मरो भव कैसे जिन्दा होत हए, और बे कैसो प्रकारको शरीर लैके आतहए?” " 36 ए मूर्ख! जो तुम लगातहौ बो ना मरके सजीव नाए होत हए|

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15/37.txt Normal file
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\v 37 \v 38 \v 39 37 जो तुम लगात हौ बो चाहिँ पच्छु होनबारी शरीर नैयाँ, पर बीज इकल्लो लगात हौ, चाहे बो गेहूँ, अथवा और कोइ किसिमको अन्न होबए| 38 पर अपनके खुशी लागोजैसो परमेश्वर बोके एक शरीर देतहए, और हरेक किसिमको बीजके बहेको शरीर देतहए| 39 सबै शरीर एक किसिमको नाए होत हए| आदमीको शरीर एक किसिमको, और जीवजन्तुको दुसरो किसिमको, चिरैयाको औरे किसिमको, और मछ्रीको औरे किसिमको शरीर हए|