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सेनाओं के यहोवा के भवन की नींव डालने के समय

“जब मेरे भवन की नीव ठहराई जाने वाली थी”

मन्दिर के बनने के समय में

“सखत मेहनत”

उन दिनों के पहले

“तुम भवन की त्‍यारी करने से पहले”

न पशु का भाड़ा

“वहा काटने के लिऐ कौई फसल नही थी”

न तो मनुष्य की मजदूरी मिलती थी और न पशु का भाड़ा,

यह लोगो के लिऐ बेकार था और उनके जानवरो के लिऐ खेती करना, क्‍योकि उनको इससे अनाज नही मिलेगा।