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(अब पौलुस झूठे शिक्षकों से ध्यान हटाकर तीतुस और विश्वासियों पर केन्द्रित करता है)।
पर तू
इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है,“पर इन झूठे शिक्षकों के विपरीत तीतुस तू”
खरे उपदेश
“जो शिक्षा अनुचित न हो” या “उचित शिक्षाओं”
संयमी
“मिताचारी” या “शान्त-चित्त” इसका अनुवाद होगा, “स्वशासित”
गम्भीर
“आत्म संयमी” या “अपनी लालसाओं को वश में रखने वाले”
पक्का
इससे अगली तीन बातें का वर्णन होता है, विश्वास, प्रेम और धीरज। “खरी” का अर्थ है “जो अनुचित नहीं”
विश्वास....(में पक्का)
“उचित विश्वास” या “मान्यताओं के अचूक है”
प्रेम.... (में पक्का)
“सद्भावना का प्रेम”
धीरज पक्का
“दृढ़” या “अड़िग” या “अथक”