hi_tn/rom/06/15.md

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पौलुस दासत्व को एक रूपक स्वरूप काम में लेता है कि परमेश्वर की आज्ञा पालन एवं अवज्ञा को स्पष्ट कर पाए।

तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं? कदापि नहीं।

पौलुस यह प्रश्न पूछ कर इस बात को महत्त्व प्रदान करता है कि कृपा पाकर जीने का अर्थ यह नहीं कि पाप करते रहें। वैकल्पिक अनुवाद हो सकता है, “तथापि, मूसा प्रदत्त विधान की अपेक्षा परमेश्वर की कृपा के अधीन होने का अर्थ निश्चय ही यह नहीं कि हमें पाप करने की छूट है”

कदापि नहीं।

“हम कभी नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो” या “या परमेश्वर मेरी सहायता करे कि ऐसा न करूं”। इस अभिव्यक्ति से एक अत्यधिक प्रबल इच्छा प्रकट होती है कि ऐसा न हो। अपनी भाषा में भी ऐसी ही अभिव्यक्ति काम में लेना चाहेंगा देखें कि अपने यहाँ कैसा अनुवाद किया है।

क्या तुम नहीं जानते हो कि जिसकी आज्ञा मानने के लिए तुम अपने आपको दासों के समान सौंप देते हो उसी के दास हो?

पौलुस इस प्रश्न के द्वारा उस हर एक मनुष्य को झिड़कता है जो परमेश्वर की कृपा को पाप करते रहने का कारण बनाता है। वैकल्पिक अनुवाद, “तुम्हें इस तथ्य का ज्ञान होना चाहिए कि तुम जिसे स्वामी की आज्ञा मानने का चुनाव करते हो, उसके दास हो जाते हो।

चाहे पाप के .... चाहे आज्ञाकारिता के

यहाँ “पाप” और “आज्ञाकारिता” को दास के स्वामियों की उपमा दी गई है। इसका अनुवाद एक नए वाक्य में किया जा सकता है, “तुम या तो पाप के दास हो, जिससे आत्मिक मृत्यु होती है, या तुम आज्ञाकारिता के दास हो जिससे परमेश्वर तुम्हें धार्मिकता कहता है।