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505 B

मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ

मैं पृथ्वी पर परदेशी के समान अज्ञानी हुँ

मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है

मेरे प्राणों में वेदना है क्योंकि मैं बहुत कुछ जानना चाहता हुँ