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सामान्य जानकारी
पद 13 और 14 में आसाप लगातार बताता है कि कैसे वो कभी-कभी घण्मडी और दुष्ट लोगों के बारे में परमेश्वर को शिकायत करता है। पद 15 में वो अपनी सोच के बारे में बताता है।
मैंने
यहाँ आसाप अपनी बात करता है
हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया
मैंने अपने विचारों को शुद्ध रखा
अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है
मेरे सारे काम निर्दोश रखे
दिन भर
“हमेशा“ या “हर रोज“
मार खाता आया हूँ
“तूने मुझे दुख दिया है“
मेरी ताड़ना होती आई है
मुझे दण्ड मिला है
यदि मैंने कहा होता, “मैं ऐसा कहूँगा”, तो देख मैं तेरे सन्तानों की पीढ़ी के साथ छल करता
मैं कहा कि मैं ऐसे कभी नहीं कहूँगा, ख मैं तेरे सन्तानों की पीढ़ी के साथ छल नहीं करता