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मैं परमेश्‍वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा,

लेखक परमेश्‍वर के विषय में कहता है जैसे कि वह एक बहुत बड़ा पहाड़ है जो कि दुश्मनों के हमले से सुरक्षा प्रदान करता है।

मैं क्यों शोक का पहरावा पहने हुए चलता-फिरता हूँ?

“शोक में जाना”

मेरी हड्डियाँ मानो कटार से छिदी जाती हैं

लेखक अपने विरोधीयों की निंदा को इस तरह प्रकट करता है जैसे कि वह घातक जख्मों को ले रहा है।

वे दिन भर मुझसे कहते रहते हैं

“उसके विरोधी उसको लगातार नहीं परँतू अकसर कहते रहते है”

तेरा परमेश्‍वर कहाँ है?

“यहा तुम्हारा परमेश्‍वर मदद के लिऐ नही है”