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मेरी प्रार्थना सुन...मेरी सुन... मेरी दुहाई पर कान लगा;

यह वाक्‍यांश इस बात पर जोर देता है कि लेखक कितनी द्रढता से चाहता है कि परमेश्‍वर उसे उतर दे।

मेरा रोना सुनकर शान्त न रह।

“मुझे ऐसे नजर अंदाज मत करो जैसे आपने मुझे सुना ही नही”

क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री के समान रहता हूँ,

“जैसे कि मैं तुम्हा‍रे लिए एक अन्‍जान हूँ”

मुझे बचा ले।

“कृपया मुझे दंड देना बंद करें! "

जिससे मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूँ!”

“ताकि मैं दोबारा खुस हो सकूँ”