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उसने तुच्छ नहीं जाना और न उससे घृणा करता है।

"उसने प्रशंसा की और पोषित किया"

उसने दुःखी को तुच्छ नहीं जाना और न उससे घृणा करता है।

"जो पीड़ित है उसका तिरस्कार या घृणा नहीं की है"

तुच्छ और घृणा।

इन दोनो शब्दों का मूल रूप से एक ही मतलब है और इस बात पर जोर देते है कि परमेश्‍वर लेखक को नहीं भूले हैं।

तुच्छ।

“नफरत”

घृणा

“अपमानित”

दुःखी को तुच्छ नहीं जाना... उससे ....उसने उसकी दुहाई दी,

"जो पीड़ित हैं ... उनसे ... जो पीड़ित हैं वे रोये"

उससे अपना मुख नहीं छिपाया

“अनदेखा नही किया”

उसकी सुन ली।

“उसने उतर दिया”

तेरी ही ओर से।

यहा “तेरी” शब्‍द यहोवा को दर्शाता है”

मैं अपनी मन्नतों को उसके सामने पूरा करूँगा।

यह लेखक के बलिदानों को दर्शाता है जो उसने परमेश्‍वर को अर्पित करने के लिए वादा किया था।

उसके भय रखनेवालों के सामने।

“उन लोगों की उपस्थिति में जो तुझसे डरते हैं"