hi_tn/luk/16/08.md

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(यीशु शिक्षाप्रद कथा सुना रहा है)

स्वामी ने उस अधर्मी भण्डारी को सराहा

जिन ऋणियों के ऋण कम कर दिए गए थे, उन्होंने सोचा कि यह साहूकार का प्रबन्ध है अतः वे उस धनवान मनुष्य की प्रशंसा करते थे।

सराहा

“प्रशंसा की” या “इसके लिए अच्छी बातें की” या “अनुमोदन किया”

उसने चतुराई से काम किया

“उसने समझदारी से काम किया” या “उसने बुद्धिमानी का काम किया”

इस संसार के लोग

अर्थात परमेश्वर को न समझने और जानने वाले लोग जो उस धर्मी प्रबन्धक के जैसे हैं। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “इस संसार के लोग” या “सांसारिक जन”

ज्योति के लोगों

अर्थात धर्मी जन जो कुछ नहीं छिपाते। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “ज्योति की सन्तान” या “ज्योति में निर्वाह करने वाले मनुष्य”

मैं तुमसे कहता हूँ

“मैं” यीशु के लिए है। यीशु की कहानी समाप्त हो गई है। “मैं तुम से कहता हूँ” इस उक्ति द्वारा उसकी बात में परिवर्तन आता है। वह श्रोआतों को समझा रहा है कि इस कहानी की शिक्षा को अपने जीवन में कैसे प्रासंगिक बनाएं।

अधर्म के धन से

भौतिक सम्पदा से अर्थात वस्त्र, भोजन, पैसा, बहुमूल्य समान से

अनन्त निवासों में

इसका संदर्भ स्वर्ग से है जहाँ परमेश्वर रहता है।