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यदि कोई मेरे पास आए और अपने पिता... को भी अप्रिय न जाने तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता।

इसे विधानवाचक वाक्य में अनुवाद किया जा सकता है, यदि कोई मेरे पास आए तो वह मेरा शिष्य तब ही हो सकता है जब वह अपने पिता से लगाव न रखे”।

अप्रिय

यह एक अतिशयोक्ति है जो प्रकट करती है कि सबसे अधिक यीशु से प्रेम रखना कितना महत्त्वपूर्ण है। यदि इस अतिशयोक्ति को गलत समझा जाए तो इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यदि कोई मेरे पास आए और अपने पिता से अधिक मुझसे प्रेम न रखे तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता है” या “यदि कोई मेरे पास आए तो वह मेरा शिष्य तब ही हो सकता है जब वह अपने पिता से अधिक मुझसे प्रेम रखे”।

वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय जाने

“और अपने प्राण को भी”

और जो कोई अपना क्रूस न उठाए और मेरे पीछे न आए, वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता”

इसका विधानवाचक वाक्य बनाया जा सकता है, “यदि कोई मेरा शिष्य होना चाहता है तो उसे अपना क्रूस उठा कर मेरे साथ चलना होगा”

अपना क्रूस .... उठाए

इसका अर्थ है मरने के लिए तैयार रहे। उस युग में जिन्हें मृत्यु दण्ड दिया जाता था उन्हें अपना वह क्रूस उठाकर ले जाना होता था जिस पर उन्हें लटकाया जाना होता था। यीशु के अनुयायियों को भावी कष्टों को सहने के लिए तैयार होना था।