hi_tn/luk/05/37.md

2.5 KiB

x

(यीशु धर्मगुरूओं को एक और शिक्षाप्रद कथा सुनाता है।)

कोई .... नहीं भरता

“कोई.... नहीं रखता है” यू.डी.बी. या “मनुष्य कभी नहीं रखते”

नया दाखरस।

“अंगूर का ताजा रस” अर्थात जिस दाखरस का खमीर नहीं उठा है।

मशकों

ये पशुओं के चमड़े से बनी होती थी उन्हें "दाख रस के थैले" या "चमड़े के थैले"(यू.डी.बी.) भी कह सकते हैं।

नया दाखरस मशकों को फाड़ कर बह जायेगा।

“नया दाखरस खमीर होकर फैलेगा तो पुरानी मशकें लचीली न होने के कारण फट जायेंगी” यीशु के श्रोतागण को दाखरस के किणवन की प्रक्रिया की जानकारी थी कि वह फैलता है।

दाखरस .... बह जाएगा

“दाखरस मशकों से बाहर निकल जाएगा

नईं मशकें

“नई मशकों” अर्थात जिन्हें पहले काम में नहीं लिया गया है।

पुराना दाखरस

“जिस दाखरस का खमीर उठ गया है।

वह कहता है कि पुराना अच्छा है

यहाँ अतिरिक्त जानकारी देना सहायक सिद्ध होगा। “अतः वह नया दाखरस पीना नहीं चाहता है”। यह एक रूपक है जिसके माध्यम से धर्म-गुरूओं की पुरानी शिक्षा की तुलना यीशु की नई शिक्षा से की गई है। कहने का अर्थ यह है कि जो पुरानी शिक्षाओं के अभ्यास थे वे यीशु की शिक्षा को स्वीकार नहीं करते थे, क्योंकि वे नई थी।