hi_tn/lam/04/17.md

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हमारी आँखें व्यर्थ ही सहायता की बाट जोहते-जोहते धुँधली पड़ गई हैं

वे लोगों से सहायता की आशा कर रहे थे परँतु किसी ने उनकी सहायता नहीं की

लोग हमारे पीछे ऐसे पड़े

यहाँ कहीं हम गये हमारे दुश्‍मनों ने हमारा पीछा किया

हमारा अन्त

“हमारे मरने का समय”