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सामान्‍य जानकारी:

अय्यूब ने अपना मामला परमेश्‍वर के सामने पेश करना खत्म किया।

तू मेरे लिये कठिन दुःखों की आज्ञा देता है

"तुम मेरे खिलाफ आरोप लिखते हो"

मेरी जवानी के अधर्म का फल* मुझे भुगता देता है।

"तुम कहते हो कि मैं अभी भी अपने जवानी के पापों के लिए दोषी हूं"।

जवानी के अधर्म

“जो पाप मैंने जवानी में किए थे।“

और मेरे पाँवों को काठ में ठोंकता

"यह ऐसा है जैसे तुनें मेरे पैर काठ में डाल दिए।"

काठ

एक ढांचा जिसमें एक कैदी के पैरों को रखा जाता है ताकि वह बिल्कुल भी हिल न सके।“

मेरी सारी चाल-चलन देखता रहता है

“जो भी मैं करता हुं।“

मेरे पाँवों की चारों ओर सीमा बाँध लेता है

"तूं उस मैदान की जाँच कर जहाँ मैं चला हूँ।"

मेरे पाँवों की चारों ओर सीमा बाँध लेता है

"तुं मेरी हर चीज की जांच करता हैं किसी के कदमों की जांच करने वाले व्यक्ति की तरह है"।

मैं सड़ी-गली वस्तु के तुल्य हूँ जो नाश हो जाती है

अय्‍युब उसके जीवन की तुलना उस चीज से करता है जो सड़ रही है। “वह धीरे-धीरे मर रहा है“।

कीड़ा खाए कपड़े के तुल्य हूँ।

अय्‍युब खुद की तुलना उन कपड़ों से करता है जो छेदों से भरे होते हैं क्योंकि पतंगे के कीड़े इसके कुछ हिस्सों को खा चुके होते हैं।