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इसलिए मैं अपना मुँह बन्द न रखूँगा; अपने मन का खेद खोलकर कहूँगा; और अपने जीव की कड़वाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूँगा

अय्यूब दो अलग-अलग वाक्यो का प्रयोग करके इस बात पर ज़ोर देता है कि वह चुप नहीं रहेगा।

मैं अपना मुँह बन्द न रखूँगा

“मै अब बोलना बंद नही करुँगा”।

मन का खेद खोलकर कहूँगा

“मेरी आत्मा की पीड़ा है“।

अपने जीव की कड़वाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूँगा

“मेरी आत्मा की नाराजगी”।

क्या मैं समुद्र हूँ, या समुद्री अजगर हूँ, \q कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है?

अय्यूब परमेश्‍वर को अपना गुस्सा दिखाते हुए कहता है कि “मै एक समुद्री रक्षक की तरह हूँ जो उस पर नजर रखतता है”।