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सामानय जानकारी:

लेखक 17 आयत मे दो अलग-अलग विचारो को परमेश्‍वर को सामने रखता है।

परन्तु मेरी आँखों के सामने कोई रूप था

मेरी आँखो के सामने कुछ था जो मैने देखा।

शब्द सुन पड़ा

“मैने वह सुना”।

क्या नाशवान मनुष्य परमेश्‍वर से अधिक धर्मी होगा?

एक नश्वर मनुष्य परमेश्‍वर से अधिक धर्मी नहीं हो सकता ”

क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है?

एक व्यक्ति अपनी निमर्ता से शुद्ध नही हो सकता।

सृजनहार

“रचयिता“।