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हे व्यभिचारिणियों

यह रूपक परमेश्वर को न मानने वाले विश्वासियों की तुलना उस स्त्री से करता है जो अपने पति के विश्वासयोग्य नहीं और दूसरे पुरूषों से यौन संबंध बनाती है। “तुम परमेश्वर के स्वामीभक्त नहीं हो।”

क्या तुम नहीं जानती...?

यह एक प्रभावोत्पादक प्रश्न है जिसके द्वारा याकूब अपने पाठकों को शिक्षा देना चाहता है। “तुम भली भान्ति अभिज्ञ हो।”

संसार का मित्र होना

अर्थात संसार की सदाचार की मान्यताओं तथा आचरण के अनुरूप होना या उसमें सहभागी होना।

वह अपने आपको परमेश्वर का बैरी बनाता है।

वह अपने आपको परमेश्वर का बैरी बनाता है। संसार की सदाचार की मान्यताओं के अनुरूप आचरण रखना परमेश्वर विरोधी है। “परमेश्वर का सम्मान न करने वालों के अनुरूप व्यवहार करना परमेश्वर का विरोध करना है।”

संसार का मित्र

“परमेश्वर का सम्मान न करने वालों के अनुरूप होना”

क्या तुम यह समझते हो कि पवित्र शास्त्र व्यर्थ कहता है?

इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा याकूब अपने पाठकों को शिक्षा देता है। इसका अनुवाद कथनात्मक वाक्य में किया जा सकता है, “धर्मशास्त्र सच ही कहता है।”

जिस आत्मा को उसने हमारे भीतर बसाया है क्या वह ऐसी लालसा करता है

इस पद में अनेक बातें स्पष्ट नहीं की गई हैं। “आत्मा” क्या पवित्र आत्मा है या मनुष्य की आत्मा है? क्या परमेश्वर या आत्मा अभिलाषाओं में लिप्त है? क्या यह लालसा अच्छी है या बुरी है? क्या यह प्रभावोत्पादक प्रश्न उत्तर में “हाँ” की अपेक्षा करता है या “नहीं” की। या 2) “हाँ” परमेश्वर उस पवित्र आत्मा की लालसा करता है जिसे परमेश्वर ने हममें अन्तर्वास करवाया है या 3) “हाँ” परमेश्वर ने हममें जो आत्मा फूंका है उसमें बुरी लालसायें हैं। या 4) “हाँ” पवित्र आत्मा जिसे परमेश्वर ने हमें अन्तर्वास करवाया है, वह हमारे लिए गहन लालसा करता है। 5) “नहीं” परमेश्वर ने जिस पवित्र आत्मा का हम में अन्तर्वास करवाया है, वह डाह नहीं करता है। “हमारा सुझाव है कि आपके पाठक जिन विभिन्न अनुवादों को पढ़ते हैं उनमें व्यक्त अर्थों को यहाँ काम में लें।”