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वैसे ही
यह मनुष्य की जीभ की तुलना पिछले पदों में व्यक्त घोड़े की लगाम और जहाज की पतवार से की गई है।
बड़ी बड़ी डींगे मारती है
“मनुष्य जीभ से बुरी-बुरी बातें कहता है”
देखो...कितने बड़े
देखो...कितने बड़े “विचार करो कैसे बड़े”
थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में
“चोटी सी चिंगारी बड़े वन के अनेक वृक्षों को जला देती है”
जीभ भी एक आग है
जैसे आग सब कुछ भस्म कर देती है, वैसे ही मनुष्य के मुंह की बातें (जीभ- metonymy) मनुष्यों को बहुत हानि पहुंचाती है (metaphor) “जीभ आग के सदृश्य है”
जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है।
वैकल्पिक अनुवाद: “यह देह का एक छोटा सा अंग है परन्तु यह हर प्रकार से पाप करने के योग्य है।”
सारी देह पर कलंक लगाती है।
इसका एक नया वाक्य बनाया जा सकता है। “यह पूर्णतः परमेश्वर के लिए अप्रसन्नता का कारण हमें बना सकती है।” या “यह हमें परमेश्वर के ग्रहणयोग्य नहीं होने देती है।”
और जीवन गति में आग लगा देती है।
“जीवन गति” एक रूपक है जो मनुष्य के संपूर्ण जीवन को व्यक्त करता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “यह मनुष्य के संपूर्ण जीवन को विनाश के गर्त में गिरा देती है।”
और नरक कुण्ड की आग से जलती रहती है।
यह “जीभ” के संदर्भ में है। यहाँ “नरक” लाक्षणिक उपयोग है जो शैतानी शक्तियों का संदर्भ देता है वरन् शैतान का। इसका अनुवाद कतृवाच्य में किया जा सकता है, “क्योंकि शैतान हमारी जीभ का उपयोग बुराई के निमित्त करता है।”