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क्या मैं उसके बचे हुए भाग को घिनौनी वस्तु बनाऊँ?...क्या मैं काठ को प्रणाम करूँ?”

“मुझे बनाना नही चाहीऐ....आराधना के लिऐ किसी बेकार चीज को। मुझे लकड़ी की शिली के आगे झुकना नही चाहीऐ।”