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परमेश्‍वर

बाइबल में, "परमेश्‍वर" शब्द अनंतकाल तक रहने वाला को दर्शाता है जिन्होंने ब्रम्हांड को बिना किसी चीज के बनाया। परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में विद्यमान है। परमेश्वर का व्यक्तिगत नाम "यहोवा" है। 1) परमेश्‍वर हमेंशा अस्तित्व में रहे हैं; किसी भी चीज से पहले वह अस्तित्व में था, और वह हमेशा के लिए अस्तित्व में रहेगा। 2) वह एकमात्र सच्चा परमेश्‍वर है और ब्रम्हांड में हर चीज पर उसका अधिकार है। 3) परमेश्वर संपूर्नता से धर्मी, असीम बुद्धिमान, पवित्र, पाप रहित, न्यायी, दयालु और प्रेम करने वाला है। 4) परमेश्‍वर ने अपना नाम "यहोवा" के रूप में प्रकट किया, जिसका अर्थ है, "वह है" या "मैं हूं" या "वह (जो हमेशा मौजूद है)

पवित्र

यह शब्‍द “पवित्र” बाईबल में शीर्षक है जो हमारे परमेश्‍वर को दर्शाता है। 1) पूराने नियम में यह शीर्षक “इस्राएल के पवित्र” के वाक्‍यांश के रूप मे आता है। 2) नये नियम में यह शीर्षक “पवित्र” के वाक्‍यांश के रूप मे आता है। 3)“पवित्र” शब्‍द का इस्‍तमाल बाईबल में कभी-कभी दूतो को दर्शाने के लिऐ किया जाता है।”

तेज,

सामन्‍य रूप में “तेज” शब्‍द का अर्थ सम्मान, वैभव और अत्यधिक महानता। जिस किसी की भी महिमा होती है उसे "तेजसवी" कहा जाता है। 1) कभी-कभी "महिमा" किसी के उच्‍च मूल्य और महत्व को दर्शाती है। अन्य संदर्भों में यह वैभव, चमक या निर्णय के बारे में बताती है। 2) महिमा का उपयोग विशेष रूप से परमेश्‍वर का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जो ब्रम्हांड में किसी से भी अधिक शानदार है। उनके चरित्र में सब कुछ उनकी महिमा और उनके वैभव को प्रकट करता है।

आकाश

जिस शब्द का अनुवाद "स्वर्ग" के रूप में किया गया है, यह दर्शाता है कि परमेश्‍वर कहाँ रहता है। संदर्भ के आधार पर एक ही शब्द का अर्थ "आकाश" भी हो सकता है। 1) शब्द "आकाश" सूर्य, चंद्रमा और सितारों सहित पृथ्वी के ऊपर दिखाई देने वाली सभी चीजों को दर्शाता है। इसमें स्वर्गीय पिंड, जैसे दूर के ग्रह भी शामिल हैं, जिन्हें हम सीधे पृथ्वी से नहीं देख सकते हैं। 2) बाईबल में कुछ संदर्भों में, "स्वर्ग" शब्द आकाश या उस स्थान का उल्लेख कर सकता है जहाँ परमेश्वर रहता है। 3) जब "स्वर्ग" का प्रयोग आलंकारिक रूप से किया जाता है, तो यह परमेश्‍वर को दर्शाने का एक तरीका है। उदाहरण के लिए, जब मैथ्यू "स्वर्ग के राज्य" के बारे में लिखता है, तो वह परमेश्‍वर के राज्य का उल्लेख करता है।

स्तुति

किसी की प्रशंसा करना उस व्यक्ति के लिए प्रशंसा और सम्मान व्यक्त करना है। 1) लोग परमेश्‍वर की स्तुति करते हैं क्योंकि वह कितना महान है और सभी अदभुत चीजों के कारण उसने दुनिया के निर्माता और उद्धारकर्ता के रूप में काम किया है। 2) परमेश्‍वर की प्रशंसा में अक्सर उसने जो किया है उसके लिए धन्‍यावाद होना शामिल है। 3) संगीत और गायन को अक्सर परमेश्‍वर की स्तुति के रूप में उपयोग किया जाता है। 4) परमेश्‍वर की स्तुति करना उसकी पूजा करने का अर्थ का हिस्‍सा है।