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दाखमधु भिन्न-भिन्न रूप के सोने के पात्रों में डालकर

इस वाक्‍य में कहा जा सकता है कि “अतिथि ने सोने के कप से दाखमधु पिया।“

राजा की उदारता से बहुतायत के साथ पिलाया जाता था।

राजा शाही दाखमधु के साथ बहुत उदार था।

बहुतायत

राजा की दाखमधु देने की बड़ी इच्छा थी।

किसी को विवश करके नहीं पिलाया जाता था

नियम के अनुसार किसी को भी दाखमधु पीने के लिए विवश करके नहीं पिलाया जाता था।

राजा ने तो अपने भवन के सब भण्डारियों को आज्ञा दी थी, कि जो अतिथि जैसा चाहे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना।

इस वाक्‍य का अर्थ है कि राजा ने अपने भण्डारियों से कहा कि वह सभी अतिथि को जितनी चाहें उतनी दाखमधु दें।