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ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसका वश प्राण पर चले कि वह उसे निकलते समय रोक ले, ... न कोई मृत्यु के दिन पर अधिकारी होता है.

जिस तरह किसी मनुष्य के पास खुद की सांस लेने से रोकने की क्षमता नहीं है अर्थात् वैसे ही मरने के समय कोई भी जीवित रह नहीं सकता है।

अपनी दुष्टता के कारण बच सकते हैं।

लेखक दुष्टता की बात करता है जैसे कि वह एक स्‍वामी थी जो दास हो गयी है।

ध्यानपूर्वक देखने में

"मैंने अपना मन बनाया"

जितने काम किए जाते हैं।

हर काम जो लोग करते हैं।