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वह मनुष्यों को बहुत भारी लगती है
"यह लोगों के लिए कठिनाई का कारण बनता है।
धन सम्पत्ति और प्रतिष्ठा।
इन दो शब्दों का अर्थ एक ही बात से है। अर्थात् वह पैसे और उन चीजों को दर्शाता हैं जो एक मनुष्य पैसे से खरीद सकता है।
जो कुछ उसका मन चाहता है।
"उसके पास सब कुछ है"
परमेश्वर उसको उसमें से खाने नहीं देता।
धन या संपत्ति प्राप्त करना और उनका आनंद नहीं ले पाना निरर्थक है।
यह व्यर्थ और भयानक दुःख है।
किसी की संपत्ति का आनंद लेने में असमर्थ होना एक दुःख या अभिशाप है।