forked from WA-Catalog/hi_tn
1.0 KiB
1.0 KiB
लाभ से यह भी व्यर्थ है।
जिस प्रकार वाष्प में कोई पदार्थ नहीं होता अर्थात् उसी प्रकार धन की कामना में भी संतोष नहीं होता।
जब सम्पत्ति बढ़ती है।
"जैसा कि एक पुरुष अधिक समृद्ध होता है"
तो उसके खानेवाले भी बढ़ते हैं।
संभावित अर्थ है कि एक पुरुष और भी अधिक लोग ऐसे होंगे जो अपने धन का उपयोग करेंगे।
क्या लाभ होता है कि उस सम्पत्ति को अपनी आँखों से देखे?
धन से मालिक को एकमात्र लाभ यह है कि वह इसे देख सकता है।