hi_tn/ecc/05/06.md

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कोई वचन कहकर अपने को पाप में न फँसाना।

"तुम जो कहते हो उससे पाप होने का कारण न बनने दें"

परमेश्‍वर क्यों तेरा बोल सुनकर क्रोधित हो.... हाथ?

“परमेश्‍वर को नाराज़ करना मूर्खता होगी… हाथ।

तेरे हाथ के कार्यों को नष्ट करे

"तुम जो कुछ भी करते हैं उसे नष्ट करें"

क्योंकि स्वप्नों की अधिकता से तों व्यर्थ बाकी बहुतायत होती है

अधिकता करने वाले शब्द उन्हें पदार्थ नहीं देते हैं, अर्थात् जैसे कई सपने वास्‍तविक बनाता है।