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जब कि तुम मसीह के साथ संसार की आदि शिक्षा की ओर से भर गए हो।
जिस प्रकार एक मृतक मनुष्य संसार की मांग (श्वास, भोजन, निन्द्रा) के प्रति निश्चेष्ट है उसी प्रकार आत्मिकता में मसीह के साथ मृतक मनुष्य संसार की आत्मिक अंगों के प्रति निश्चेष्ट होता है।
तुम ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो?
तुम ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो? पौलुस इस प्रश्न द्वारा कुलुस्से के विश्वासियों को संसार की झूठी आस्थाओं को मानने के लिए झिड़कता है। “सांसारिक आस्थाओं पर चलना छोड़ दो”।
ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो
“क्यों मानते हो” या “अधीन क्यों हो जाते हो” या “पालन क्यों करते हो”
नष्ट होता
नष्ट हो जाएंगी
ये मनुष्यों की आज्ञाओं और शिक्षाओं के अनुसार हैं
ये नियम मानवीय दृष्टिकोण से समझदारी के प्रतीत होते हैं जिनमें दीनता और शारीकि योगाभ्यास है।
योगाभ्यास
“शरीर को कष्ट देना” “कठोरता करना” “भीषणता करना”
शारीरिक लालसाओं को रोकने में इनसे कुछ भी लाभ नहीं
“इनसे शरीर की अभिलाषाओं पर विजयी होने में सहायता नहीं मिलती है।”