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जो आकाश में अपनी कोठरियाँ बनाता

ये शायद वे कदम हैं जिनकी कल्पना प्राचीन लोग स्वर्ग में परमेंश्‍वर के भवन तक पहुचनें के लिये करते थे।

पने आकाशमण्डल की नींव पृथ्वी पर डालता

"पृथ्वी पर अपने सहारे को स्थापित किया है," अर्थात्, रचना जिस पर पृथ्वी टिकी हुई है।