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वे तो जान बूझकर यह भूल गए

ठट्ठा करने वाले कहते हैं सृष्टि के आरम्भ से कुछ नहीं बदला है और वे जान-बूझ कर इसे भूलना चुनते हैं।

कि परमेश्वर के वचन के द्वारा आकाश प्राचीन काल से विधमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी और जल में स्थिर है।

“परमेश्वर ने कहा और आकाश और पृथ्वी जल में से उभर आए और उन्हें भी जल के द्वारा अलग किया”

और यह कि उसके वचन के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नष्ट हो गया

“जिस वचन का प्रयोग परमेश्वर ने सृष्टि के निर्माण के लिए किया था उसी वचन का प्रयोग करके उसने उस युग के जगत को बाढ़ से नष्ट कर दिया”

वही वचन

“परमेश्वर का वचन”

और आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिए रखे गए हैं कि जलाए जाएं

“परमेश्वर का वचन आकाश और पृथ्वी को जलाए जाने के लिए रखे हुआ है”

ये भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नष्ट होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे।

आकाश और पृथ्वी तब तक रखे रहेंगे जब तक परमेश्वर भक्तिहीन लोगों का न्याय न कर ले।