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यह विशेषकर सत्य है

शब्द “यह” का तात्पर्य परमेश्वर के अधर्मी लोगों को न्याय के दिन तक बन्दी बनाए रखने से है ।

वे जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते हैं और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं

भक्तिहीन जो पाप की प्रकृति के पीछे चलते रहते हैं और प्रभुता या सत्ता में लोगों की नहीं सुनते।

शरीर

शब्द “शरीर” से तात्पर्य मनुष्य की शारीरिक या पापी प्रकृति से है।

वे ढीठ और हठी हैं

“वे” शब्द से अभिप्राय उन लोगों से है जो अपनी पापी प्रकृति में अशुद्ध अभिलाषाओं में बने रहते हैं और स्वर्गदूतों या आत्मिक प्रभुत्व के लोगों का सम्मान नहीं करते।

वे ऊँचे पद वालों को बुरा भला कहने से नहीं डरते

भक्तिहीन लोग स्वर्गदूतों का अपमान करने और उन्हें बुरा भला कहने से भी नहीं डरते।

स्वर्गदूत सामर्थ और शक्ति में सब मनुष्यों से बड़ें हैं

स्वर्गदूत शारीरिक शक्ति में, प्रभुत्व और सामर्थ में सभी मनुष्यों से अधिक बड़े हैं।

पर वे प्रभु के सामने उन्हें भला-बुरा कहकर उनपर दोष नहीं लगाते।

“पर स्वर्गदूत इन मनुष्यों के विरुद्ध परमेश्वर के सम्मुख अपमानजनक न्याय नहीं लाते”