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विरोध या झूठी बड़ाई

“ऐसा काम कभी न करो जिससे केवल तुम ही प्रसन्न हो या तुम अन्यों से अधिक महत्त्वपूर्ण प्रकट हो”।

दीनता

दीनता अर्थात हमारा स्वभाव और मनुष्यों के बारे में हमारी मानसिकता। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “विनम्रता पूर्वक ध्यान दो”।

अपने ही हित की नहीं

अर्थात “अपनी ही चिन्ता नहीं” या “अपनी ही स्वार्थ सिद्धि नहीं” इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, अपनी ही आवश्यकताओं पर ध्यान न दो”