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यीशु जनसमूह को दृष्टान्तों द्वारा परमेश्वर के राज्य के बारे में सिखा रहा है।

मैं उनसे... बातें करता हूँ।

"उनसे" इन दोनों पदों में जनसमूह के लिए प्रयुक्त सर्वनाम है।

वे देखते हुए नहीं देखते और सुनते हुए नहीं सुनते, यद्यपि वे देखते है परन्तु वास्तव में देख नहीं पाते और वे सुनते तो है परन्तु वास्तव में सुन नहीं पाते।

यीशु इस सदृश्यता द्वारा शिष्यों से कह रहा है कि जनसमूह समझने से इन्कार करता है।

वे देखते तो हैं परन्तु वास्तव में देख नहीं पाते।

"यद्यपि वे देखते हैं वे ग्रहण नहीं कर पाते" यदि क्रिया को "कर्म" की आवश्यकता हो तो अनुवाद इस प्रकार हो सकता है, "यद्यपि वे वस्तुओं को देखते हैं वे उन्हें समझते नहीं"। या "यद्यपि वे घटनाओं को घटते देखते हैं, वे समझ नहीं पाते कि उनका अर्थ क्या है"।

सुनते हुए नहीं सुनते और नहीं समझते

"यद्यपि वे सुनते हैं वे समझ नहीं पाते" यदि क्रियाओं का "कर्म" की आवश्यकता है तो इसका अनुवाद होगा, "यद्यपि वे निर्देश सुनते हैं, वे सत्य को समझ नहीं पाते।"

तुम कानों से तो सुनोगे पर समझोगे नहीं। देखने से तो तुम देखोगे परन्तु ग्रहण नहीं कर पाओगे।

यह यशायाह भविष्यद्वक्ता द्वारा उद्धरण है जो उसके युग में अविश्वासी लोगों के लिए कहा गया था। यीशु इस उद्धरण द्वारा उसके श्रोताओं का वर्णन कर रहा है। यह एक और दृष्टांत है।

तुम सुनोगे परन्तु किसी भी प्रकार समझ नहीं पाओगे।

इसका अनुवाद हो सकता है, "तुम सुनोगे परन्तु समझोगे नहीं"। यदि क्रिया के लिए "कर्म" की आवश्यकता हो तो इसका अनुवाद इस प्रकार होगा, "तुम बातों को सुनोगे परन्तु उन्हें समझोगे नहीं"।

आँखों से तो देखोंगे पर तुम्हे न सूझेगा

"तुम देखोगे परन्तु ग्रहण नहीं कर पाओगे"। यदि क्रिया के लिए "कर्म" की आवश्यकता हो तो अनुवाद इस प्रकार होगा, "तुम बातों को देखोंगे परन्तु अंतर्ग्रहण नहीं कर पाओगे।"