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यीशु जनसमूह से यूहन्ना की चर्चा समाप्त करता है।

न खाता आया

"भोजन नहीं करता था", "बहुधा उपवास रखता था" या सामान्य उत्तम भोजन नहीं खाता था (यू.डी.बी.) इसका अर्थ यह नहीं कि यूहन्ना भोजन ही नहीं करता था।

वे कहते हैं "उसमें दुष्टात्मा है।"

यीशु यूहन्ना के विषय लोगों की बातों का उद्धरण दे रहा है इसका अनुवाद परोक्ष वाक्य में किया जा सकता है, "वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा है" या "वे उस पर दुष्टात्माग्रस्त होने का दोष लगाते हैं।"

उन्होंने

"वे" अर्थात वह पीढ़ी (पद 16)

मनुष्य का पुत्र

क्योंकि यीशु उन लोगों से अपेक्षा करता था कि वे उसे पहचान लें कि वह मनुष्य का पुत्र है, अतः इसका अनुवाद किया जा सकता है, "मैं, मनुष्य का पुत्र"।

वे कहते हैं देखो पेटू.... मनुष्य।

यीशु लोगों की बातों का उद्धरण दे रहा है कि वे उसके अर्थात मनुष्य के पुत्र के बारे में क्या कहते हैं। इसका अनुवाद परोक्ष वाक्य में किया जा सकता है, "वे कहते हैं कि वह पेटू मनुष्य है", या "वे उस पर खाते रहने का दोष लगाते हैं।" यदि आप "मनुष्य के पुत्र" का अनुवाद "मैं, मनुष्य का पुत्र" करते हैं तो परोक्ष उद्धरण को अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, "वे कहते हैं कि मैं पेटू मनुष्य हूँ"।

वह पेटू मनुष्य है

"वह खाने का लालची है" या "वह स्वभाव से ही बहुत खाता है"।

पियक्कड़

"पियक्कड़" या "बहुत मदिरा पीने वाला"

पर ज्ञान अपने कामों से सच्चा ठहराया जाता है।

यह संभवतः एक नीतिवचन है जिसे यीशु इस परिस्थिति में प्रासंगिक बना रहा है क्योंकि जिन मनुष्यों ने यीशु को और यूहन्ना को ग्रहण नहीं किया वे बुद्धिमान नहीं हैं। इसका अनुवाद कर्तृवाच्य वाक्य में किया जा सकता है जैसा यू.डी.बी. में है।

ज्ञान अपने कामों से सच्चा ठहराया जाता है।

ज्ञान को मानव रूप देने की इस अभिव्यक्ति का अभिप्राय यह नहीं कि ज्ञान परमेश्वर के समक्ष उचित ठहरे परन्तु इस अभिप्राय में कि वह सच्चा ठहराया जाता है। (देखें: ))

अपने कामों से

"अपने" सर्वनाम शब्द के मानवीकरण के संदर्भ में है।