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यीशु द्वारा अपने सेवाकार्य के निमित्त बारह शिष्यों को भेजने का वृत्तान्त ही चल रहा है जिसका आरंभ में हुआ है।

तुम.... तुम्हारा

यह सर्वनाम प्रेरितों के लिए काम में लिया गया है।

जिस किसी नगर या गाँव में जाओ।

जिस किसी नगर या गाँव में आओ , "जब किसी नगर या गाँव में प्रवेश करो", या "उस हर एक नगर या गाँव जिसमें तुम प्रवेश करो"।

नगर.... गाँव

"बड़ा गाँव.... छोटा गाँव" या "बड़ा नगर.... छोटा नगर" ये शब्द वही हैं जिसको में काम में लिया गया है।

जब तक वहाँ से न निकलो उसी के यहाँ रहो।

"उसी मनुष्य के घर में रहना जब तक कि नगर या गाँव से प्रस्थान न करो"।

घर में प्रवेश करते हुए उसको आशिष देना।

"घर में प्रवेश करते ही वहाँ रहनेवालों को आशिष देना"। उस समय का प्रचलित आशीर्वाद था, "इस परिवार को शान्ति मिले"।

यदि उस घर के लोग योग्य होंगे।

"यदि उस घर के लोग तुम्हारा अच्छा स्वागत करें" (यू.डी.बी.) या "उस घर के लोग तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करें"।

तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचेगा।

"उन्हें शान्ति मिलेगी" या "उस घर के लोग शान्ति में जीएंगे"।(देखें: यू.डी.बी.)

तुम्हारा कल्याण

वह शान्ति जिसके लिए प्रेरित परमेश्वर से विनती करें कि वह उस परिवार को दे।

यदि वे योग्य न हों।

"यदि वे तुम्हारा अच्छा स्वागत न करें" (यू.डी.बी.) या "यदि वे तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार न करें"।

तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आयेगा।

इसका अर्थ दो में से एक हो सकता है, (1) यदि वह परिवार योग्य न हुआ तो परमेश्वर अपनी शान्ति या आशिष उस परिवार से रोक लेगा, जैसा यू.डी.बी में व्यक्त किया गया है या (2) यदि वह परिवार योग्य न हुआ तो प्रेरितों से कुछ करने की अपेक्षा की गई है, जैसे, परमेश्वर से विनती करना कि उनका अभिवादन स्वीकार न करे। यदि आपकी भाषा में आशिष को वापस लेने का या उसके प्रभाव को निष्फल करने का शब्द है, जो उसे काम में लें।