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यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है, यह घटना में आरंभ हुई थी।

तुम पृथ्वी के नमक हो।

"तुम पृथ्वी के निवासियों के लिए नमक के समान हो"। या जैसा नमक भोजन में वैसा ही तुम संसार में हो"। इसके अर्थ हो सकते हैं (1) ठीक वैसे ही जैसे नमक भोजन को स्वादिष्ट बनाता है, तुम्हें संसार में लोगों को प्रभावित करना है कि वे भले मनुष्य हों" या (2) जिस प्रकार नमक भोजन को परिरक्षित करता है वैसे ही तुम भी मनुष्य को भ्रष्ट होने से बचाए रखो"।

यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए।

इसका अर्थ है "यदि नमक की नमकीन करने की क्षमता चली जाए" (जैसा यू.डी.बी. में है) या (2) यदि नमक अपने स्वाद से वंचित हो जाए"।

वह फिर किस वस्तु से नमकीन हो सकता है?

"वह उपयोगी कैसे किया जाए"? या "उसे उपयोगी बनाने का कोई उपाय नहीं"

बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंधा जाए।

"वह एक काम का रह जाता है कि सड़क पर फेंक दिया जाए जहाँ लोग चलते हैं"।

तुम जगत की ज्योति हो।

"तुम संसार में लोगों के लिए ज्योति के समान हो"।

जो नगर पहाड़ पर बसा है वह छिप नहीं सकता।

"पहाड़ पर बसे नगर की बत्तियां रात में छिप नहीं सकती है"। या "पहाड़ पर बसे नगर की बत्तियां सब देख सकते हैं"। (देखें: और )