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(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)

तुम ऐसे न होना

“तुम्हारी मानसिकता ऐसी न हो”

छोटे के समान

“सबसे कम महत्त्व का” अगुवे अधिकतर आयु में अधिक होते थे जिन्हें “पुरनिये” कहते थे। “सबसे छोटा मनुष्य के लिए अगुआई के पद की संभावना सबसे कम थी”।

क्योंकि

यह संपूर्ण पद 26-27 में दी गई यीशु की आज्ञा से संबन्धित है। यहाँ मुख्य विचार है कि सबसे बड़ा सेवा करे क्योंकि मैं एक सेवक हूं। यीशु जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मनुष्य था उसकी सेवा करता था, अतः उनमें जो सबसे बड़ा था उसे उन सबकी सेवा करना आवश्यक था।

वह जो सेवा करता है

“सेवक”

बड़ा कौन है?

“बड़ा कौन है” या “कौन अधिक महत्त्वपूर्ण है”? यीशु ने यह आलंकारिक प्रश्न पूछ कर परदेश में महानता के विषय में शिष्यों के प्रश्न का उत्तर दिया। इस आलंकारिक प्रश्न का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “मैं चाहता हूं कि तुम विचार करो कि कौन बड़ा है”।

वह जो भोजन पर बैठा है

इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “वह जो भोजन कर रहा है”

वह जो सेवा करता है

“वह जो भोजन परोसता है” या “जो भोजन पर बैठनेवाले की सेवा करता है” यह सेवक का संदर्भ है।

क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है?

यह भी एक आलंकारिक प्रश्न है। इसका संलग्न उत्तर है, “निश्चय ही जो भोजन पर बैठा है, वह सेवक से बड़ा है”।

परन्तु मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूं।

“परन्तु” शब्द यहाँ इसलिए है कि मनुष्य जो यीशु से अपेक्षा करते थे और जो वह वास्तव में थे दोनों में विषमता है। इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है, “तथापि मैं तुम्हारी सेवा कर रहा हूं”।