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(यीशु अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखा रहा है)

सुनो, वह अधर्मी न्यायी क्या कहता है?

“विचार करो कि उस अधर्मी न्यायी क्या कहता है” इसका अनुवाद इस प्रकार करें कि पाठकों को समझ में आ जाए कि यीशु ने अपनी बात उस न्यायी के शब्दों में कह दी है।

क्या परमेश्वर.... न्याय न चुकाएगा?

यीशु ने इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा यह संकेत दिया कि उसके श्रोताओं को उसकी शिक्षा को समझ लेना चाहिए। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “परमेश्वर निश्चय ही चुकाएगा” या “अतः तुम निश्चित जानो कि परमेश्वर न्याय चुकाएगा”

अपने चुने हुओं का

“जिन मनुष्यों को उसने चुन लिया है”

क्या वह उनके विषय में देर करेगा?

यीशु इस आलंकारिक प्रश्न द्वारा श्रोताओं को स्मरण कराना चाहता था कि परमेश्वर का यह गुण तो उन्हें पहले ही से जानना आवश्यक था। इसका अनुवाद इस प्रकार भी किया जा सकता है, “और तुम जानते हो कि वह उनके साथ देर नहीं करता है”।

मनुष्य का पुत्र

यीशु स्वयं को संबोधित कर रहा है

क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?

इस शिक्षाप्रद कथा का उद्देश्य था कि शिष्यों को विश्वास के साथ प्रार्थना करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। यीशु का यह एक और आलंकारिक प्रश्न है जिसके द्वारा यीशु नकारात्मक उत्तर पाना चाहता था। इस प्रश्न का अर्थ है, “मैं जानता हूँ कि जब मैं, मनुष्य का पुत्र लौटकर आऊंगा तब मैं ऐसे मनुष्यों को भी देखूंगा जो मुझ में विश्वास नहीं रखते हैं”।