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(यीशु अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहा है)

क्या वह उस पाप का अहसान मानेगा?

पिछले दो पदों के अनुवाद के आधार पर इसका अनुवाद भी इस प्रकार होगा, “वह धन्यवाद नहीं कहेगा” या “तुम धन्यवाद नहीं कहोगे”।

जिसकी आज्ञा दी गई थी

“जो आज्ञा तुमने दी थी”

क्या उसका अहसान मानेगा?

इसका अनुवाद हो सकता है, “ठीक”? या “क्या यह सच नहीं । इस आलंकारिक प्रश्न के द्वारा यीशु अपने शिष्यों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करता है कि उसने जो कहा वह स्पष्टतः सच है।

तुम भी

यीशु अपने शिष्यों से बातें कर रहा है इसलिए जिन भाषाओं में “तुम” शब्द बहुवचन में है, उसका उपयोग किया जाए।

तो कहो

“परमेश्वर से कहो”

हम निकम्मे दास हैं

इसका अनुवाद हो सकता है, “हम साधारण दास हैं” हम सेवक तेरी प्रशंसा के योग्य नहीं हैं”।