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(यीशु इस शिक्षाप्रद कथा का ही अर्थ समझा रहा है)
चिन्ता... में फंस जाते हैं
“इस जीवन की चिन्ता, घर का लालच और सुखभोग उनके विश्वास को कुंठित कर देता है” या “जिस प्रकार झाड़ियां अच्छे पौधे को बढ़ने नहीं देती, उसी प्रकार चिन्ताए, धन, लोलुपता और विलासिता की चाह इन मनुष्यों को विश्वास में परिपक्व नहीं होने देते”।
चिन्ता
“जिन बातों के लिए मनुष्य परेशान होता है,”
जीवन के सुखविलास
“जीवन में मनुष्यों के सुख-भोग की बातें”
उनका फल नहीं पकता
“वे पक्का फल नहीं लाते”, इस रूपक का अनुवाद उपमा द्वारा भी किया जा सकता है, “जैसे एक दृश्य परिपक्व होकर फल नहीं लाता, वे भी परिपक्व होकर भले काम नहीं करते”।
धीरज से फल लाते हैं
“धीरज से फल लाते हैं”, इस रूपक का अनुवाद उपमा के उपयोग से भी किया जा सकता है, “ऐसे फल लाते हें जैसे एक अच्छा वृक्ष अच्छे फल लाता है, वे यत्न करके भले काम करते हैं”