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वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना।

"यद्यपि वह इस संसार में था और परमेश्वर ने यहाँ पर जो कुछ है वह सब कुछ उसी के द्वारा सृजा मनुष्यों ने फिर भी उसे स्वीकार नहीं किया"।

वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया

"वह अपने ही स्वदेश-वासियों में आया और उसके अपने ही स्वदेश-वासियों ने भी उसे स्वीकार नहीं किया"।