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हर प्रकार के वन-पशु, पक्षी और रेंगने वाले जन्तु और जनचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गये हैं।
“हर प्रकार के” यह एक अतिशयोक्ति है जिसका अर्थ है, “नाना प्रकार के” इसका अनुवाद कतृवाच्य क्रिया द्वारा किया जा सकता है, “मनुष्यों ने विभिन्न पशुओं, पक्षियों, सरीसृपों तथा जलचरों को अपने वश में कर लिया है।”
रेंगने वाले जन्तु
भूमि पर रेंगने वाले जन्तु जैसे सांप, आदि।
जलचर
पानी में रहने वाले जन्तु
पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता।
यहाँ “जीभ” लाक्षणिक प्रयोग है जो मनुष्य के लिए काम में लिया गया है। इसका संपूर्ण अर्थ व्यक्त किया जा सकता है, “परमेश्वर के बिना कोई भी जीभ को वश में नहीं कर सकता है।”
वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं
वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है।