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तुम जानते हो
स्थापित अर्थ हैं 1) एक आज्ञा स्वरूप “जान लो” कि जो मैं कहने जा रहा हूं उस पर ध्यान दो या 2) इस बात को गांठ बांध लो मैं तुम्हें जो स्मरण कराने जा रहा हूं वह तुम जानते ही हो।
हर एक मनुष्य सुनने के लिए तत्पर और बोलने में धीर
मनुष्य ध्यान से सुने और जो वे कहते हैं सोच समझ कर कहें।
क्रोध में धीमा हो।
“आसानी से क्रोध न करो।”
मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता।
क्रोध करने वाला मनुष्य परमेश्वर की इच्छा का आचरण नहीं रख सकता है।
सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके...
ये भिन्नार्थक शब्द बल देने के लिए हैं। “हर प्रकार के बुरे काम करना छोड़ दो”
नम्रता
“घमंड से मुक्त” या “अभिमान रहित”
वचन को
परमेश्वर का वचन जो उनमें रोपित किया गया है “परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए उच्चारित वचन का पालन करो।”
तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
यहाँ “प्राणों” शब्द संपूर्ण मनुष्य का द्योतक है, मनुष्य का उद्धार किससे हुआ वह भी स्पष्ट किया जा सकता है।