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इसलिए मैं यह कहता हूं और प्रभु से आग्रह करता हूं।

“इसलिए मैं तुम्हें प्रभु में प्रबल प्रोत्साहन देता हूं”

जैसे अन्यजाति अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं।

“अन्य जातियों के निस्सार विचारों के अनुरूप जीवन निर्वाह त्याग दो”

उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है, परमेश्वर के जीवन से अलग हो गए क्योंकि वे आज्ञानता में जीने लगे थे

उन्हें ईश्वरीय जीवन का बोध नहीं हो सकता क्योंकि उनके मन इच्छाओं से अंधे होकर कठोर हो गए है”

अज्ञानता के कारण

वे न तो स्पष्ट सोच रखते हैं न ही तर्क कर सकते हैं

परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं

“ईश्वर भक्ति के जीवन से दूर है”

उस अज्ञानता के कारण

“क्योंकि उन्हें परमेश्वर का ज्ञान नहीं”

उनके मन की कठोरता के कारण

“वे परमेश्वर की वाणी सुनने से इन्कार करते हैं और उसकी शिक्षाओं पर नहीं चलते है”

वे सुन्न होकर, लुच्चपन में लग गए है कि वह सब प्रकार के गंदे काम लालसा से किया करें

उन्होंने अपना हर एक अभिलाषा के निमित्त चरित्रहीन व्यवहार के द्वारा भोग विलास की निरकुंश कामनाओं में जीवन लिप्त कर लिया है”