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करूणा... धारण करो
जिस प्रकार मनुष्य वस्त्र धारण करता है, विश्वासियों को करूणा और भलाई और दीनता, और नम्रता और सहनशीलता अपनाना है। आपस में ऐसा ही व्यवहार करो।
धारण करो
पिछली परिचर्चा में या शिक्षा पर आधारित स्वभाव परिवर्तन या कार्य परिवर्तन को विशेष रूप से व्यक्त करने के लिए यहां उपदेश में स्पष्टता लाई गई है।
परमेश्वर चुने हुओं के समान पवित्र और प्रिय
“परमेश्वर के पवित्र और प्रिय चयनित जनों के समान”
बड़ी करूणा और भलाई, और दीनता और नम्रता और सहनशीलता
“अनुकंपा पूर्ण, दयालु, विनम्र, दीन और धीरजवन्त, आन्तरिक मनुष्य
अनुकंपा
“सहानुभूति” या “आदर”
दया
“भलाई” या “कोमलता”
विनम्रता
“मन की दीनता”, “निरंकार या “निराभिमान”
दीनता
“सज्जनता”, आत्मा की शान्ति दिखाने की नहीं परमेश्वर के समक्ष
धीरज
“सहनशीलता” या “घृति” या “आत्म संयम”
एक दूसरे की सह लो
मेल-मिलाप और प्रेम में रहो। एक दूसरे को सहन करो या आपसी मेल रखो
किसी पर दोष लगाने का कोई कारण हो
“किसी से शिकायत हो”
सबसे ऊपर प्रेम को ... बान्ध लो
“प्रेम रखो”
सिद्धता का कटिबन्ध
“जो हमें पूर्णतः बांधता है” या “जो हमें सामजंस्य में संयोजित करता है”